टेंडर में धांधली पर हाईवे अथॉरिटी के महाप्रबंधक पर एफआईआर

टेंडर में धांधली पर हाईवे अथॉरिटी के महाप्रबंधक पर एफआईआर

जम्मू
लखनपुर से जम्मू तक नेशनल हाईवे के रखरखाव और मरम्मत के टेंडर में धांधली पर एनएच अथॉरिटी के महाप्रबंधक, ठेकेदार समेत अन्य लोगों पर एफआईआर दर्ज की गई है। प्रारंभिक जांच में 9.34 करोड़ की टेंडर प्रक्रिया में गड़बड़ी सामने आते ही एसीबी ने मामला दर्ज कर छानबीन शुरू कर दी है। इसमें एनएचएआई के तत्कालीन क्षेत्रीय अधिकारी हेमराज, ठेकेदार राकेश कुमार चौधरी समेत अन्य को आरोपी बनाया गया है।

जानकारी के अनुसार जम्मू से लखनपुर 97 किलोमीटर और कुंजवानी से सिद्दड़ा बाईपास 15 किलोमीटर के रखरखाव और मरम्मत के लिए 15 करोड़ रुपये का ई-टेंडर किया गया। बाद में इसे रद्द कर नया टेंडर किया गया। इसमें सबसे कम बोली लगाने वाले राकेश कुमार चौधरी को 9.34 करोड़ का ठेका दे दिया गया। राकेश ने तय रेट से 42 फीसदी कम बोली लगाई।

दूसरी सबसे कम बोली किसी और ने लगाई थी। टेंडर के लिए एक कमेटी का गठन किया गया था, जिसमें एनएचआईए के अन्य वरिष्ठ अफसरों को शामिल किया गया। तत्कालीन क्षेत्रीय अधिकारी हेमराज कमेटी के चेयरमैन थे। कमेटी में परियोजना निदेशक अजय कुमार, डीजीएम गोपाल दास और मैनेजर गुलाम कादिर शामिल थे।

शिकायत पर सीबीआई और एसीबी ने प्रारंभिक जांच में पाया कि तत्कालीन क्षेत्रीय अधिकारी हेमराज ने मिलीभगत से राकेश कुमार चौधरी को ठेका दिलाया, जिसमें नियमों को ताक पर रखा गया। ठेकेदार के पास न तो इसकी पात्रता थी और न ही टेंडरिंग प्रक्रिया की अनिवार्य शर्तों को पूरा किया गया। ठेकेदार की ओर से कई जाली दस्तावेज भी पेश किए गए। इन तमाम पहलुआें को कमेटी सदस्यों के संज्ञान में लाया जाना चाहिए था।

जांच में जब अजय कुमार रजक व अन्य सदस्यों से पूछा गया तो पता चला कि कमेटी चेयरमैन ने अपने स्तर पर ही अपात्र आवेदक के नाम टेंडर करवाने की व्यवस्था करवा दी। प्रारंभिक जांच करने के बाद 24 मार्च बुधवार को इस मामले में उक्त आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई। अब मामले में आगे की कार्रवाई होगी।

दूसरी कम बोली वाले से चर्चा तक नहीं
हाईवे की ओर से जारी टेंडर में दूसरी कम बोली मोहनदास द्वारा लगाई गई थी। लेकिन इनकी बोली को पूरी तरह निरस्त किया गया। इस आवेदक के साथ चर्चा तक नहीं की गई। मोहनदास ने इस मामले को कोर्ट में भी उठाया था। बावजूद इसके कोई कार्रवाई नहीं की गई। जांच में भी यह भी पाया गया कि राकेश कुमार चौधरी ने जो अनुभव प्रमाणपत्र दिया, उसमें जिस कार्य को अपना अनुभव बताया, वो कहीं शामिल नहीं था।

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